सोमवार, 23 मई 2011

अंतर


"अरे बेटी , पूरे दो महीने बाद आना हुआ तुम्हारा .....कैसी है मेरी बेटी ?"  माँ ने मायके आई हुई बेटी की कुशलक्षेम पूछते हुए कहा .

"क्या बताऊ माँ , मैं तो अपनी ननद से बड़ी परेशान हू . दो महीने भी पूरे नहीं गुजरते कि ननद रानी पति -बच्चो समेत मायके आ धमकती है . उनके बच्चो का सारा दिन धमा-चौकड़ी मचाना शुरू रहता है और ननद रानी आराम से अपनी माँ के साथ बतियाती बैठी रहती है ...इतने सारे लोगो का नाश्ता -खाना मुझे अकेले ही बनाना पड़ता है  और उसमे भी ढेरो फरमाइशे और नखरे ....ऊपर से ऑफिस में अलग छुट्टी लेनी पड़ जाती है ...अभी परसों ही मेरी ननद अपने ससुराल वापस गयी है ...तब मैंने चैन की साँस ली है और यहाँ आ पाई हू.." बेटी ने शिकायती अंदाज़ में जवाब दिया .

"कैसी है तेरी ननद ....क्या उसे जरा भी नहीं समझता कि तू एक नौकरी पेशा स्त्री है ...घर - गृहस्थी के सभी कामो के साथ साथ बाहर के काम भी करती है , फिर सास - ससुर की सेवा , दो छोटे बच्चों को संभालना , उन्हें पढाई करवाना ..ये सब जिम्मेदारिया  तेरे ही  ऊपर है ...ऐसे में उसे हर दो महीने में मुंह उठा के मायके नहीं चले आना चाहिए ...और इतनी फरमाइशे नहीं करना चाहिए ..खैर छोड़ , ये सब बाते ....पहले बता कि शाम के नाश्ते और रात के खाने में क्या बनवा ले .." माँ ने बड़े प्यार से अपनी बेटी से कहा, फिर अपनी बहू को आवाज़ दी ..."बहू ....दीदी के लिए अभी तक चाय -नाश्ता तैयार नहीं हुआ क्या ?  दीदी पूरे दो महीने बाद आई है ...ऐसा करो तुम ऑफिस से आज की छुट्टी ले लो ..."

28 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

अफ़सोस है कि यह घर घर की कहानी है ....काश हम अपने और दूसरे के दर्द को एक जैसा महसूस करना सीख पायें !
शुभकामनायें !

vandana gupta ने कहा…

ये अन्तर ही तो किसी को समझ नही आता।

श्यामल सुमन ने कहा…

कथ्य कहने का अंदाज अच्छा लगा स्वाति जी - यदि मैं अपने अंदाज में कहूँ तो-

सीख सिखाना काम सरल है, करके दिखाओ तो सब जाने
बारी अपनी जब आती है, लगते हैं वे पीठ दिखाने

सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

'पर उपदेश कुशल बहुतेरे'का सटीक उदाहरण !
अगर हम पहले अपने को ही अनुशासित कर लें तो समस्या खत्म हो जायेगी !

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

:)

Rajeev Bharol ने कहा…

छोटी सी कहानी में बड़ी बात कह गईं आप. एकदम सटीक. यही होता है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

घर घर की कहानी ... सटीक व्यंग है ....

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

अंतर स्पष्ट है और ये अंतर एकतरफ़ा भी नहीं है। बहू अपने मायके में तो संयुक्त परिवार की हिमायती होगी लेकिन ससुराल में संयुक्त परिवार में दम घुंटता है। सर्वव्यापक अंतर।

Unknown ने कहा…

ऐसा ही होता है, कोई कितना भी कह ले की वो बहू को बेटी की तरह रखेगा लेकिन फिर भी बहू को बेटी का स्थान कोई नहीं दे पाता !
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - स्त्री अज्ञानी ?

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

घर घर की कहानी ... सटीक व्यंग है ....

मेरे भाव ने कहा…

बेटी और बहु में फर्क जब मिट जायेगा... सास माएं बन जाएँगी

मनोज कुमार ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

yahi to kahani hai har ghar ki........:)

Harshvardhan ने कहा…

bahut khoob

संतोष पाण्डेय ने कहा…

shandar vyangya.dohri mansikta ka vastvik chehra.

मनोज भारती ने कहा…

लघु-कथा के हर पहलू से सर्वश्रेष्ठ ठहरती है आपकी यह कहानी।

कथा में संदेश है।
कथा छोटे-छोटे संवादों से बुनी गई है।
लेखक कथा में कहीं नहीं है, सारी बात पात्रों के माध्यम से सशक्त ढ़ग से रख दी है।
दोहरी मानसिकता का बहुत सुंदर ढ़ग से चित्रण हुआ है।
कम शब्दों में वर्णन होने के बाद भी कहानी प्रभावोत्पादक बन पड़ी है।
लघु-कथा के हर पैमाने पर खरी उतरती है यह कहानी ।

उम्दा!!!

Udan Tashtari ने कहा…

समझ सकते हैं...

Udan Tashtari ने कहा…

क्या कहा जाये...काश!! लोग समझते.

बेनामी ने कहा…

दूसरों का दर्द, दर्द नहीं लगता - कम शब्द और अलग अंदाज में प्रशंसनीय प्रस्तुति

Amrita Tanmay ने कहा…

सुंदर पोस्ट ,शुभकामनायें

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट बधाई और शुभकामनायें |

daanish ने कहा…

नसीहत करने वाले और
दूसरों में दोष निकलते रहने वाले
कभी खुद के अन्दर भी झाँकें .... !?!
कहानी कहने का मक़सद
पूरा कर दिखाया आपने .
अभिवादन .

अनुनाद सिंह ने कहा…

स्वाति जी,

श्रीकृष्ण सरल के बारे में और उनसे सम्बंधित साहित्य -

क्रान्तिकारी कोश (गूगल पुस्तक ; लेखक - श्रीकृष्ण सरल)
http://books.google.co.in/books?id=wC_O2AUuTVEC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false

श्रीकृष्ण सरल की रचनाएँ कविता कोश में
http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3_%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2


अनुभूति में श्रीकृष्ण सरल की रचनाएँ


महाकवि श्रीकृष्ण सरल
http://www.kavisaral.blogspot.com/

सरल चेतना
http://www.saralchetana.blogspot.com/

http://www.google.co.in/search?q=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3+%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2&ie=utf-8&oe=utf-8&aq=t&rls=org.mozilla:en-US:official&client=firefox-a#q=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3+%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2&hl=en&client=firefox-a&hs=KCv&rls=org.mozilla:en-US:official&prmd=ivnso&ei=vzcoTvL4D460rAea67zrAQ&start=10&sa=N&bav=on.2,or.r_gc.r_pw.&fp=620c8d8527360c11&biw=836&bih=450

Unknown ने कहा…

दुःख तो इस बात का है की हर कमाने वाले स्त्री की यही दुर्दशा है....

Unknown ने कहा…

दुःख तो इस बात का है की हर कमाने वाले स्त्री की यही दुर्दशा है....

Unknown ने कहा…

दुःख तो इस बात का है की हर कमाने वाले स्त्री की यही दुर्दशा है....

बेनामी ने कहा…

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निर्झर'नीर ने कहा…

स्वाति जी ...बहुत अच्छा कटाक्ष किया है ,
वैसे आप भी बहुत कम लिख रही है आजकल एक लम्बे अरसे बाद आना हुआ है हमारा भी ,कभी कभी इन्सान के पास ना कोई काम होता है और ना ही वक़्त है ना अजीब सी बात ,..........हौसला_अफजाई का शुक्र गुजार हूँ