
मित्रो , यह कविता नहीं बल्कि मेरे विवाहपूर्व के अल्हड जीवन और वर्तमान के व्यस्त और जिम्मेदारियों से युक्त जीवन की पूरी इमानदारी के साथ की गई तुलना है , इसलिए ही मैंने इसका शीर्षक चुना है -तब और अब
(!!! सभी पाठको को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !!!)
तब निरंतर जारी रहता ,हसने का क्रम
अब एक मुस्कराहट भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।
तब हजारो रेसिपिया संजोते थे डॉयरियो में हम
अब एक व्यंजन भी बन जाए , तो बड़ी बात है ।
तब हजारो गीत गुनगुनाते थे हम
अब एक पंक्ति भी गा पाये ,तो बड़ी बात है ।
तब नित तारीफों की बरसात में भीगते थे हम
अब सराहना की एक बूँद भी पा जाए ,तो बड़ी बात है ।
तब दूसरो के बच्चों को सुनाया करते थे हजारो रोचक कहानिया हम ,
अब ख़ुद के बच्चों को एक कहानी भी सुना पाये , तो बड़ी बात है ।
तब एक जरा सी बात पर नदियाँ आसुओं की बहाया करते थे हम ,
अब हज़ार ग़मों में एक आंसू भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।
तब एकदम निश्चिंत ,एकदम बेफिक्र थे हम ,
अब एक चिंता भी कम हो जाए ,तो बड़ी बात है ....