शुक्रवार, 7 मई 2010

क्यों ऐसा होता है , कोई तो बतलाये ?



कभी तो रिश्तों में ढूंढे से भी न मिले अपनापन

तो कहीं सहज ही मिल जाते है मन

कभी परछाई भी उजाले की साथी बनकर अँधेरे में छुप जाये

तो कहीं वजूद किसी और का खुद में महसूस किया जाये

कभी जीवन में अपना पराया समझ में न आये

तो कहीं जन्म जन्म का बंधन सांसों से बंध जाएँ

क्योँ ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?
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कभी तो चार पलों में जी उठते सारा जीवन

तो कहीं लगते सारे अजनबी से क्षण

कहीं फैला है चाहत का विस्तृत आकाश

तो कहीं रिश्तों में व्याप्त सूनापन और प्यास

कभी पुराने लम्हे फिर से नयें अहसासों में ढल जाये

तो कही रिश्तों के नए अर्थ नए रूप में बदल जाये

क्यों ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?

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कभी तो गंतव्य तक पहुच कर भी अर्थहीन रहते शब्द

तो कहीं बिन संचार के ही तरंगित हो उठते शब्द

कभी तो समझा समझा कर हार मान ली जाये ,

तो कही बिन कहे सुने ही सब समझ में आ जाये

कभी तो साथ साथ रह कर भी बने रहे पराये

तो कहीं लाख दूरियों के बीच भी मनो का मेल हो जाये ।

क्यों ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?

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कभी तो कहने सुनने को कुछ रहे नहीं शेष

तो कहीं कहने सुनने के लिए वक़्त कम पढ़ जाये

कहीं लगें मन का हर कोना सूना सूना

तो कहीं यादों के दरख़्त से टूटे लम्हे मन के आँगन में खिल जाये

कभी खुद की पहचान भी बन जाये अपरिचित

तो कहीं संपूर्ण अस्तित्व भी एक दुसरे में समाये

क्यों ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?
कोई तो बतलाये ?


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सोमवार, 3 मई 2010

क्या लगातार पुराने लोगो से अचानक मिलना कोई संयोग है ?


२० अप्रैल से लेकर २२ अप्रैल तक लगातार मेरा अचानक ही बरसो पुराने बिछड़े हुए ऐसे लोगो से मिलना हुआ , जिनकी न मुझे कोई खबर थी ,न ही मुझे जिनका पता ठिकाना मालूम था और अचानक जिनसे मिलने के बारे में मैंने सोचा न था । हाँ ,उन लोगो को मैं याद जरूर करती थी ..आश्चर्य की बात यह है कि ये सब ऑफिस आने के दोरान ही हुआ , जबकि मैं अप्रैल माह में छुट्टी लेना चाहती थी , जो कि लाख कोशिशों के बावजूद मंजूर नहीं हुई और मुझे ऑफिस ज्वाइन करना पड़ा , जिस क्रम में ये संयोग लगातार घटित हुए।

२० अप्रैल को मेरे कार्यालय में काव्य पाठ प्रतियोगिता थी , जिसमे नागपुर के सभी केंद्रीय कार्यालयों से लोग भाग लेने आये थे , अचानक मेरा मिलना डॉ स्मिता दीदी से हुआ , जो चंद्रपुर में बी एड की पढाई के दोरान मेरे पड़ोस में रहती थी , उस अनजान शहर में वे एकदम अपनी लगती थी और उन्होंने मेरी बहुत मदद की थी , चंद्रपुर से आने केबाद में उनसे कोई संपर्क नहीं रहा और आज अचानक यहाँ नागपुर में उनसे मुलाकात हुई , पता चला कि उनका नागपुर में ही तबादला हो गया है और २ सालों से वे नागपुर में ही है ।
दूसरी घटना हुई २१ अप्रैल को , जब मुझे यहाँ के किसी केंद्रीय कार्यालय में काव्य पाठ प्रतियोगिता में बतौर निर्णायक जाने का मौका मिला , जबकि मैंने वहा दो एक दिन पहले आने के लिए असमर्थता जताई थी , पर वहा जाना संभव हो पाया ,वहा दुसरे निर्णायक के रूप में श्री सुनील कुमार पाल जी मौजूद थे जिनसे बात करने पर पता चला की वे भी मेरे ही गृह नगर के है , हालाँकि हमारी मुलाकात पहले नहीं हुई थी लेकिन वे मेरे बहुत से सहपाठियो के संपर्क में थे , और उन्होंने मेरी अपने पुराने मित्रो से तुरंत फ़ोन पर बात कराइ ।

इसके दुसरे ही दिन सुबह सुबह मेरी एक पूर्व परिचित से अचानक मिलना हुआ , जो किसी कार्य से नागपुर आई थी ,और जिनके यहाँ वे रुकी थी , वे मुझे जानते थे । इस तरह उनके माध्यम से वे मुझ से पुनः मिल पाई ॥

लगातार और अचानक हुए इन संयोगों से मैं यह सोचने पर मजबूर हो गयी कि क्या सब कुछ पूर्व निर्धारित रहता है कि कौन कब कहा किस से मिलेगा ? कभी तो एक ही स्थान पर रहते हुए लोग आपसमें नहीं मिल पाते और कभीहजारों किलोमीटर कीदूरी पर बसे हुए आपके किसी पुराने परिचित से आपकी मुलाकात सहज ही हो जाती है ... वाकई दुनिया गोल है ॥

"ये दुनिया वाकई गोल है ,
मिलना बिछड़ना फिर से मिलना एक अनोखा खेल है
कहीं तो साथ साथ रहते हुए मिलते नहीं है दिल
तो कहीं लाख दूरियों के बीच भी मनो का होता मेल है .."