सोमवार, 29 दिसंबर 2008

तब और अब


मित्रो , यह कविता नहीं बल्कि मेरे विवाहपूर्व के अल्हड जीवन और वर्तमान के व्यस्त और जिम्मेदारियों से युक्त जीवन की पूरी इमानदारी के साथ की गई तुलना है , इसलिए ही मैंने इसका शीर्षक चुना है -तब और अब
(!!! सभी पाठको को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !!!)


तब निरंतर जारी रहता ,हसने का क्रम

अब एक मुस्कराहट भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।

तब हजारो रेसिपिया संजोते थे डॉयरियो में हम

अब एक व्यंजन भी बन जाए , तो बड़ी बात है ।

तब हजारो गीत गुनगुनाते थे हम

अब एक पंक्ति भी गा पाये ,तो बड़ी बात है ।

तब नित तारीफों की बरसात में भीगते थे हम

अब सराहना की एक बूँद भी पा जाए ,तो बड़ी बात है ।

तब दूसरो के बच्चों को सुनाया करते थे हजारो रोचक कहानिया हम ,

अब ख़ुद के बच्चों को एक कहानी भी सुना पाये , तो बड़ी बात है ।

तब एक जरा सी बात पर नदियाँ आसुओं की बहाया करते थे हम ,

अब हज़ार ग़मों में एक आंसू भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।

तब एकदम निश्चिंत ,एकदम बेफिक्र थे हम ,

अब एक चिंता भी कम हो जाए ,तो बड़ी बात है ....


गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार के लिए क्या योग्यताए होना चाहिए ?


आतंकवाद की इस घटना ने हम सभी भारतीयों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है की हमारे राजनीतिको में देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने की योग्यता नहीं है , यह भी कहा जा रहा है की हम सब का यह नैतिक जिम्मेदारी है की मतदान करे और चुनाव में योग्य उम्मीदवार को ही जिताए । पर ऐसे में यह सवाल भी उठता है की सभी उम्मीदवार एक जैसे ही लगते है और कौन योग्य निकलेगा ,कौन नही वह तो सत्ता में आने के बाद ही पता चलेगा । मुझे लगता है की यह मेरी ही नही हर आम मतदाता की , हर भारतीय की उलझन है । मुंबई की घटना के पश्चात् से ही यह उलझन मेरे मन को बहुत मथरही थी , बहुत सोचने के उपरांत कुछ उपाय सूझे , जिन्हें मैं आप के साथ बाटना चाहूंगी ...


१- चुनाव में खड़े होने के लिए उम्मीदवार का कम से कम स्नातक होना अनिवार्य करना चाहिए।


२- जिस तरह किसी छोटी से छोटी नौकरी के लिए भी अनिवार्य योग्यता और अनुभव आवश्यक होता है , उसी तरह जिन लोगो को देश की इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालनी है ,उनके लिए यह अनिवार्य होना चाहिए की उन्हें समाजसेवा का कम से कम ५-६ वर्षो का अनुभव हो .


३-कोई आपराधिक मामला या आपराधिक प्रष्ठभूमि नही होना चाहिए ,बल्कि कुछ अच्छी उपलब्धिया उनके नाम होना चाहिए । छवि साफ सुथरी होना चाहिए।


४- नौकरी की तरह उनके लिए भी प्रोबेशन पीरियड का प्रावधान होना चाहिए ।


५- ऐसे उम्मीदवार जो भड़काऊ भाषण देते है और जात ,धर्म और भाषा के नाम पर देश को बाटने का कार्य करते है ,चुनाव आयोग को उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए ।


६-हर ६ माह में उनके द्वारा किए गए काम की समीक्षा केन्द्र स्तर पर गठित ऐसे निष्पक्ष आयोग से की जनि चाहिए ,जिसका कोई पार्टी से सम्बन्ध न हो ।


७- हर उम्मीदवार को शिक्षित होने के साथ साथ कंप्यूटर तथा आधुनिक तकनिकी ज्ञान में भी दक्ष होना चाहिए ।


८-उम्मीदवारों के पार्टी बदलने पर रोक लगनी चाहिए।


फिलहाल इतना ही , आप सब से इस विषय पर सुझाव सदर आमंत्रित है ....

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

आइये , आतंकवाद के खिलाफ हम एकजुट हो जाए




आइये ,आतंकवाद के खिलाफ एक दिन हम सब सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी ब्लॉग पर अपना सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे
आज टिपण्णी नहीं साथ चाहिये । इस चित्र को अपने ब्लॉग पोस्ट मे डाले और साथ दे । एक दिन हम सब सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी ब्लॉग पर अपना सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे ।


साभार - आदरणीय सीमा गुप्ता जी का ब्लॉग ( अवश्य पढ़े http://mairebhavnayen.blogspot.com/

बुधवार, 26 नवंबर 2008

ज़माना बदल रहा है ....


२९ नवम्बर को मेरी ममेरी बहन की शादी तय की गई थी , मुझे सबसे सुकून वाली बात लग रही थी की शादी के लिए हमें शहर से कही बाहर जाने की जरूरत नही थी और शादी छुट्टी के दिन रखी गई थी . लड़का हमारे ही शहर का है और मेरे मामा-मामी इसी शहर में आ कर शादी करवा रहे थे । शादी का बहुत ही उत्साह दोनों पक्षों में था और मेरी मामी ने बड़े ही उत्साह से सारीतैयारिया की थी , और क्यो न करे उनके यहाँ पहली ही शादी थी और लड़के वालो के यहाँ पहली अरेंज मेरिज होने जा रही थी ( उनके ३ बेटो में से २ ने माता पिता की मर्जी के बिना शादी की थी ) तो उनका उत्साह तो चरम सीमा पर था । कार्ड बटचुके थे , सारी तैयारिया पूरी हो चुकी थी की अचानक .....
२२ तारीख को सुबह सुबह फ़ोन की घंटी बजी तो मन में अचानक शंका के बादल घिर आए ... ख़बर मिली की दुल्हे के पापा की डेथ हो गई है दुःख और शोक के साथ साथ इस बात की चिंता भी हो गई की अब शादी तो किसी हाल में नही हो सकती । खैर लड़के वालो के यहाँ मातमपुर्सी के लिए पहुचे , जाने से पहले लोगो ने हमें सलाह दी की शादी कैसे होगी इस बारे में पूछ लेना , लेकिन ऐसे वक्त और माहोल में कुछ पूछना उचित नही था , लेकिन वहा जाने पर लड़के वालो ने हमें ख़बर दी की जो होना था वो तो हो चुका आप लोग चिंता न करे ,शादी उसी तारीख में होगी । वाकई जमाना बदल रहा है नही तो आम तोर पर ऐसे समय में लड़की पर दोष भी दिया जाता है और शादी आगे बढ़ने की बात भी हो सकती थी । (आगे दोनों की शादी का सवा साल तक कोई मुहूर्त भी नही था .) फिलहाल चौथे दिन ही उनके यहाँ तेरावी की रस्म करी गई और अब सादे तरीके से २९ को ही शादी होने जा रही है । मैं सोच रही थी की ऐसे नाजुक वक्त दोनों पक्षों ने अत्यन्त समझदारी से काम लेकर स्थिथि संभाल ली और लड़की को बेकार के दोषारोपण से बचा लिया । काश सभी ऐसे समझदार हो जाए ...

बुधवार, 19 नवंबर 2008

आया है ये कैसा पतझड़

आया है ये कैसा पतझड़
चारों ओर है वीरानगी
पाशविकता और बेचारगी
मचा हुआ है हाहाकार
नारकीयता और यह नरसंहार
आया है ये कैसा पतझड़
सामाजिक सौहार्दता कही खो गई
मानवता कहा सो गई ?
संस्कार हो गए सारे गुम
आदर्शता पड़ने लगी कम
आया है ये कैसा पतझड़
दिखावे का खेल अनूठा
आवरण आधुनिक और झूठा
संस्कृति होने लगी मृतपाय
पैसा बन गया सभी का अभिप्राय
आया है ये कैसा पतझड़
यदि सौहार्द रूपी बसंत का हो आगमन
सुखी हो जाए सबके मन
हट जाए वीराने बादल
हरियाला हो जाए आँचल

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।


भूख से लड़ती,धूप में तपती
कर्मठ सुकोमल नारी को देखा है।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
गला सूखा, जीभ प्यासी
फिर भी अपने जिगर के टुकड़े को
वक्ष से लगाकर पयपान कराते देखा है।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
मैली कुचैली तार-तार
फटी साडी में सहम कर
तनमन छुपाते देखा है,
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
खुद भूखे पेट रहकर भी
पेट की ज्वाला भड़कने पर भी
घरवालों को भरपेट खिलाते देखा है।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
फूस की झोंपडी में
तेज आँधी-पानी में
खुद भीगते हुए भी
अपने बच्चे को बचाते देखा हैं।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
हर नई सुबह
सुनहरे भविष्य के सूर्य के उगने के इंतजार में
आशान्वित होते देखा है
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।

रविवार, 9 नवंबर 2008

सुविचार संग्रह

1.निराशा के अंधेरे को दूरकर
आशा का दीप जलाओ।
आपस में स्‍नेह जगा कर
मानवता को अपना धर्म बनाओ
2.प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति में अनेक विशेषताएं छुपी होती है,जिन्‍हें जागृत करके ही व्‍यक्‍ति का जीवन सफल और सार्थक बन सकता है .
3.सत्‍य और अहिंसा के द्वारा जीवन की हर लड़ाई जीती जा सकती है।
-महात्‍मा गांधी
4.हिंदी देश की एकता की ऐसी कड़ी है,जिसे मजबूत करना प्रत्‍येक भारतीय का प्रथम कर्तव्‍य है-श्रीमती इंदिरा गांधी
5.हिंदी राजभाषा है अपनी
दें हम इसे प्रतिष्‍ठा
इसके प्रति हम रखे निरंतर
अपनी सच्‍ची निष्‍ठा
6.मदद करने के लिए उठे हाथ दुआ करने वाले हाथों से श्रेष्‍ठ होते है।
7.विचार करके बोलना श्रेष्‍ठता और बोलने के बाद विचार करना मूर्खता है।
8.अपने दोषों तथा कमियों को जान लेना उन पर विजय प्राप्‍त करने का पहला कदम है।
9.तिरंगा हमारा भारतवर्ष की शान है। विश्‍व भर में हमारी संस्‍कृति की पहचान है।
10.व्‍यक्‍ति काम की अधिकता से नहीं, काम की अव्‍यवस्‍था से थकता है।
11. बिना चरित्र के शिक्षा का कोई महत्‍व नहीं है। (सरदार वल्‍लभ भाई पटेल)
12.इंसान के व्‍यवहार की छोटी-छोटी बातें ही उसके चरित्र का आईना होती है।
13।प्रसिद्वि और धन उस समुद्री जल के समान है,जिसे पीने पर प्‍यास और बढ़ती जाती है।

14हम जितना अधिक अध्‍ययन करेंगे ,उतना ही हमें अपनी अज्ञानता का आभास होगा ।
15.क्रोध और जल्‍दबाजी से व्‍यक्‍ति का कोई काम नहीं बनता,बल्‍कि और बिगड़ जाता है।
16.कभी कभी छोटी सी एक असफलता कई बड़ी सफलताओं के द्वार खोल देती है।
17.दूसरों के साथ वह व्‍यवहार न करें जो हमें अपने लिए पसंद नहीं हो।
18.जीवन एक पाठशाला है जिसमें व्‍यक्‍ति अनुभवों से शिक्षा ग्रहण करता है।
19.प्रत्‍येक अच्‍छा कार्य पहले असंभव लगता है।
20.असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।

बुधवार, 5 नवंबर 2008

चाहतें



इस भागदौड भरी जिंदगी में पाना चाहती हु सुकून के कुछ पल
दिशाहीन उड़ानें भरते
मन के पंछी की रोकना चाहती हूं हलचल
किसी पेड़ के साए तले
तुम्हारे कंधे पर सर रखकर ढढना
चाहती हूं समस्याओं के हल
तुम्हारे साथ मिलकर
दिल के तारों को छेड़कर
गुनगुनाना चाहती हूं एक मीठी गजल
टिमटिमाते तारों को हाथ से छूकर
बनाना चाहती हूं उन्हें अपना आँचल
दूर किसी जंगल में विचरते हुए
प्रकृति माँ की गोद में बिताना चाहती हूं पल-पल।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

आज कल में डूब गया



क्या हुआ कि-
कुछ यादें ताजा हुई
नजरें कुछ ढूंढने लगी
दिल कुछ कहने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
क्या हुआ कि -
आंखें कुछ नम हो गई
मन कहीं खोने लगा
स्मृति कोष हुए हरे-भरें
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
क्या हुआ कि -
होंठों पर गीत पुराना आ गया।
मंजरियों की अलकें झूलने लगीं
मन पुरानी गलियों में घूमने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

मिलती है मंजिल उसे



















मिलतीहै मंजिल उसे,
जो कंटकों पर चल सकें,
करे कुछ ऐसा कि
ये दुनिया बदल सकें।
मिलती है मंजिल उसे
जो संघर्ष की धूप सह सकें
पार कर सकें गमों की डगर बिन सहारें
कठिनाईयों को पी सकें।
मिलती है मंजिल उसे
जो न हो असफलताओं से पराजित
लोगों की बातों से न हो विचलित
कुंदन सा तप सकें।







कवि तुम लिखो ऐसा गीत


कवि तुम लिखो ऐसा गीत
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
विश्व में फैले भारत की कीर्ति
उकेर दो कुछ शब्द
देश की यश कीर्ति पर
पावन गंगा जमना पर
गांधी नेहरू सुभाष पर
अपने प्राणों से प्यारे वतन पर
अपनी गौरवमयी संस्कृति पर
देश के अमर शहीदों पर।
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
जिससे बढे भाईचारा और प्रीत
मिट जाए द्वेष,क्षेत्रीयता और नफरत की भावना
हो सिर्फ राष्ट्रीयता, देशप्रेम और अखंडता की कामना
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई
मिलकर बजाए एकता की शहनाई।
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
भूल न पाएं हम अपना गौरवशाली अतीत
युवाओं में फैले जागृति
होकर प्रेरित,करें वे उन्नति
उत्साह का उनमें संचार हो
जिम्मेदारियों का उन्हें एहसास हो
छंट जाए निराशा और अवसाद के बादल
खुशहाली छा जाए पल पल
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
-----

रविवार, 17 अगस्त 2008

कब तक उपेक्षित रहेगी हमारी राजभाषा-राष्ट्रभाषा हिन्दी ?

1४ sitambar आने वाला है और सभी केंद्रीय संस्थानों में शुरू होने वाली है हिन्दी पखवाडा,हिन्दी सप्ताह या हिन्दी दिवस को मनाने की कवायद । इन दिनों सभी कार्यालयों में हिन्दी से जुड़े हुए विद्वानों की खोज होगी ,हिन्दी के समारोह आयोजित किए जायेंगे ,हिन्दी को प्रोत्साहित करने की बात होगी और फिर हलचल समाप्त और अगले साल तक के लिए शान्ति व्याप्त ।
सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दी को वाकई इन पखवाड़ों-सप्ताहों की जरूरत है ? देखा जाए तो हिन्दी को वास्तव में इन पखवाड़ों-सप्ताहों दिवसों की जरूरत नही है, हमारी राजभाषा -राष्ट्रभाषा हिन्दी को जरूरत है तो शताब्दी की ,हम भारतीयों के संकल्प की ,और इस मामले में सरकार के दृढ होने की । ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है ,बस सरकार को हिन्दी को रोजगार और शिक्षा के सभी स्तरपर अनिवार्य रूप से जोड़ने की आवश्यकता है । भारत में जब अंग्रेजी लागू हुई तो क्या अंग्रेजो ने अंग्रेजी दिवस मनाये या अंग्रेजी में काम करने का निवेदन किया ? जबाब एकदम साफ़ है कि उन्होंने ऐसा कुछ ना करते हुए अंग्रजी को सीधे रोजगार से जोड़ दिया , अब जिनको नौकरी चाहिए उन्होंने एबी सी डी से शुरुआत करते हुए विदेशी भाषा भी सीखी और उसमे काम करने की आदत भी डाली । इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के कदम तारीफ के लायक है । उन्होंने नौकरी के हर स्तर पर मराठी को उचित तरीके से लागू किया है ,चाहे कितना भी बड़ा तकनिकी या अभियांत्रिकी संसथान हो, वहा से आने वाले पत्र अनिवार्य रूप से मराठी में ही आते है , ऐसा केंद्रीय स्तर पर भी तो हिन्दी को अनिवार्य roop सेअपना कर kiya जा सकता है .

मंगलवार, 5 अगस्त 2008

रामायण का विज्ञापन


इन दिनों टीवी पर एक नयी रामायण प्रसारित हो रही है और उसके प्रचार के लिए २-३ विज्ञापन भी दिखाए जा रहे है ,उन विज्ञापनों में से एक में बताया जा रहा है कि बच्चे असभ्य भाषा का प्रयोग करते हुए लडाई कर रहे है एक दूसरे को विभिन्न प्रकार की गाली दे रहे है और दूसरे में बताया जा रहा है कि एक छोटी सी लड़की किस प्रकार असभ्य शब्दों का प्रयोग कर रही है । इन विज्ञापनों को देख कर मन में एक सवाल कोंध रहा है कि क्या बच्चे इन विज्ञापनों को देख कर वाकई रामायण के प्रति आकर्षित होंगे या उन बुरे , असभ्य शब्दों को ग्रहण करेंगे ? मेरे ख्याल से तो जिन बच्चो को वे गालिया नही आती उनके अवचेतन मन में भी वे शब्द कही गहरे तक पैठ जायेंगे और कभी न कभी वे शब्द उन बच्चो के मुख से निकल सकते है । सवाल यह उठता है कि अनादिकाल से लोकप्रिय एवं हमारे संस्कारो में रची बसी रामायण की कथा प्र चार के लिए क्या ऐसे विज्ञापनों का सहारा लेना उचित है जो ख़ुद बच्चो को बुरे संस्कार सिखाने में सहायक हो सकते है । यदि प्रचार भी करना है तो क्या रामायण के प्रेरणादाई द्रश्यो को दिखा कर अथवा बच्चो को रामायण की अच्छी बातो की चर्चा करते हुए भी तो प्रचार किया जा सकता है । प्रसार मीडिया को अपनी जिम्मेदारी अच्छे से समझनी चाहिए और सरकार को भी इस पर अपना कठोर नियंत्रण रखना चाहिए .

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

पर्यावरण की सुरक्षा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए


आज नही चेते तो कल स्थिती सुधार करने लायक भी नही होगी.जी हाँ मैं बात कर रही हूँ ,प्रकृति से छेड़छाड़ और उससे प्राप्त होने वाले नतीजो की. आज जहा महाराष्ट्र और देश के कुछ इलाकों में बारिश के मौसम में जितनी वर्षा होनी चाहिए थी उतनी नही हो पाई है ,वही बिहार और अन्य भागो में बढ़ कहर ढहा रही है । कही बिजली की कमी है तो कही मूलभूत सुविधाओं की । आज से दस बरस पहले क्या हमने कभी सोचा था की पानी भी खरीद कर पीना पड़ेगा और अगर यही हालत रहे तो कुछ बरसो में ओक्सिजन भी खरीद कर साँस लेना होगा । न केवल हमारे देश में बल्कि पूरे विश्व में सर्वत्र महंगाई और प्रदुषण व्याप्त हो चुका है . माना इन सब चीजो को सुधारना पूरी तरह से न सही ,लेकिन आंशिक तोर से तो हमारे हाथ में है .आज सरकारी प्रयासों से अधिक जरूरत है कि आम आदमी चेते और अपने स्तर पर प्रयास करे । निम्नाकित सुझावों को अपना कर कुछ हद तक हम सुधर कर सकते है .
१-अपने घर के आँगन को कच्चा रखे ताकि वर्षा जल अवशोषित हो। वर्षा जल को पाइप द्वारा जमीन में भिजवाए .
२-अधिक से अधिक पेड़ पोधे लगाये । बच्चों के जन्मदिन पर उनके हाथ से पोधे लगाये और गिफ्ट में पेड़ पोधे देने को प्रोत्साहित करें
3-कार्यालयओं में अधिकतर लोगो का नजरिया होता है कि बिजली पंखे कूलर चल रहे हो तो चलने दो , हमें बिल थोड़े ही भरना है ,लेकिन वे ये नही सोचते कि बिजली कि कमी भी तो हमारा देश झेल रहा है । अतः इस नजरिये को बदलने का प्रयास करे और ख़ुद पहल करें
४-अपने नगर की झीलों को ,जलाशयों को अशुद्ध होने से बचाए.उसमे विसर्जन सामग्री ,प्लास्टिक के पेक्केट आदि न डालें ।
५-अक्सर मैं देखती हूँ विशेषकर महानगरों में , गृहनिया सब्जी फलो के छिलके इत्यादी अन्य कचरे के साथ प्लास्टिक बैग में dआल कर फिकवा देती है जिससे कि इन्हे खाने वाले जानवर मर जातें हैं । esliye ऐसा न करे सब्जी फलो के छिलके इत्यादी अलग करके जानवरों
को खाने के लिए डाले । हो सके तो गर्मी के दिनों में पक्षियों के लिए खिड़की में पानी का कटोरा भर कर रखे तथा जानवरों के लिए घर के बहार पानी का मटका इत्यादी रखे ।
६ -आसपास के छोटे मोटे कामो के लिए या तो पैदल चलें या साईकिल का उपयोग करे
इससे पेट्रोल कि बचत के साथ साथ कुछ व्ययाम भी होगा
७-हर कालोनी में सार्वजनिक उद्यानों की स्थापना करे तथा वह की सफाई तथा पोधों को जल सिंचन की और ध्यान दे । अधिक से अधिक नीम और तुलसी के पोधे लगायें। ये प्रदुषण कम करने में सहायक है.
मेरा मानना है कि इतना तो हर कोई आसानी से कर सकता है ।
शेष फिर कभी ।



बुधवार, 16 जनवरी 2008

अच्छा लगता है मुझे




अच्छा लगता है मुझे
यू ही विचारो मे खो जाना
कुछ नया सोचना कुछ समझना और समझाना
विचारो के ताने बाने बुनते चले जाना
कुछ जोड़ना और कुछ उधेड़ते चले जाना ..
अच्छा लगता है मुझे
यू ही यादो के सागर मे हिलोरे मारना
जीवन के सफर मे पीछे मुड़कर देखते जाना
अंतर की बातो को खुद से ही कहते जाना
कुछ लिखना और कुछ यू ही भूल जाना
अच्छा लगता है मुझे
यू ही भावनाओ मे बहते जाना
चिन्ताओ से दूर कभी बेफिक्र हो जाना
ढलती हुई शाम को खामोश देख पाना
मन को ओझल कर भीड़ मे खो जाना