
दिशाहीन उड़ानें भरते
मन के पंछी की रोकना चाहती हूं हलचल
किसी पेड़ के साए तले
तुम्हारे कंधे पर सर रखकर ढढना चाहती हूं समस्याओं के हल
तुम्हारे साथ मिलकर
दिल के तारों को छेड़कर
गुनगुनाना चाहती हूं एक मीठी गजल
टिमटिमाते तारों को हाथ से छूकर
बनाना चाहती हूं उन्हें अपना आँचल
दूर किसी जंगल में विचरते हुए
प्रकृति माँ की गोद में बिताना चाहती हूं पल-पल।
मन के पंछी की रोकना चाहती हूं हलचल
किसी पेड़ के साए तले
तुम्हारे कंधे पर सर रखकर ढढना चाहती हूं समस्याओं के हल
तुम्हारे साथ मिलकर
दिल के तारों को छेड़कर
गुनगुनाना चाहती हूं एक मीठी गजल
टिमटिमाते तारों को हाथ से छूकर
बनाना चाहती हूं उन्हें अपना आँचल
दूर किसी जंगल में विचरते हुए
प्रकृति माँ की गोद में बिताना चाहती हूं पल-पल।