बुधवार, 9 जून 2010

दुनिया का दस्तूर



                                            
 हाल ही में मुझे एक केंद्रीय कार्यालय में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था . व्याख्यान ख़त्म होते ही वहा के एक अधिकारी मेरे पास आये और मुझ से बोले .." दीदी , आपने मुझे पहचाना.. ? मैं पंकज ..." 

            उनके इतना कहते ही मैं तुरंत उन्हें पहचान गयी. आज से लगभग ९-१० वर्ष पूर्व मैं जब एक हिंदी समाचार पत्र  की साप्ताहिक पत्रिकाओ में बतौर उप संपादक कार्यरत थी , तो पंकज वहा मेरी बनायीं हुई पत्रिकाओ को मराठी में अनुवाद करने का कार्य करता था , उस समय वह एक कॉलेज में पढ़ रहा था और पढाई का खर्च निकलने के लिए पार्ट टाइम नौकरी कर रहा था .   मैं भी वहा सुबह ९ से १२ बजे तक  पार्ट टाइम नौकरी करती थी ,उसके बाद १२-३० से शाम ६-०० बजे तक एक स्कूल में टीचर का कार्य करती थी. मुझे वहा से स्कूल जाने की जल्दी होती थी और पंकज को कॉलेज जाने की , तो हम लोग आपसी समझ और सहयोग रखते हुये जल्दी जल्दी सारा काम निपटा लिया करते थे .वे मेरे भी संघर्ष के दिन थे और उसके भी.. 



   पंकज मुझसे उम्र में ४-५ वर्ष छोटा था , वह मुझे शुरू से ही बहुत अच्छा लगता था .न जाने क्यों मुझे पंकज को देखते ही अपने भाई  जैसा स्नेह महसूस होता था हालाँकि उसकी शक्ल मेरे भाई से बिलकुल भी नहीं मिलती थी . 


    उस के माता पिता गाँव में छोटी सी खेती करते थे, और वह यहाँ कमरा लेकर नौकरी और पढाई कर रहा था .मुझे शुरू से ही ऐसे लोग बहुत अछे लगते है जो अपने बल -बूते पर , खुद मेहनत कर के आगे बढ़ते है .धीरे धीरे पंकज मुझसे खुल कर बात करने लगा ,और मुझे बहुत मान देने लगा . 


    अक्सर घर के सब काम निपटाते निपटाते मुझे नाश्ता करने का वक़्त नहीं मिलता था ,तो मैं अपना नाश्ता समाचारपत्र के दफ्तर पहुच कर ही करती थी . पंकज को मेरे हाथ का बनाया हुआ पंजाबी खाना बहुत अच्छा लगता , विशेषकर आलू के पराठे और मूली के पराठे . मैं उसके लिए एक दो पराठे एक्स्ट्रा रख लेती , तब वह बहुत खुश होता .  धीरे धीरे उसकी बातों से पता चला  कि वह
अपने घर में सबसे बड़ा बेटा है , एक छोटा भाई और एक छोटी बहन और है , जो गाँव में ही रहकर पढाई कर रहे है . उसका सपना था कि पढ़ लिखकर वह एक अच्छी सी नौकरी पा जाए , जिससे अपने माता पिता की अच्छी तरह सेवा कर सके और छोटे भाई बहनों को अच्छी तरह पढ़ा सकें .


     एक दिन पंकज मुझसे मिलवाने के लिए एक लड़की को लेकर आया , उसका नाम नंदिनी था . वह उसके ही गाँव की थी और दोनों बचपन से ही एक दूसरे को बहुत चाहते थे . फिलहाल नंदिनी भी इसी शहर में रह कर आगे की पढाई कर रही थी . मुझे नंदिनी बहुत ही अच्छी लगी , एकदम पंकज की तरह ही संस्कारवान ,सुसंस्कृत ,विनम्र . उन दोनों का रिश्ता आजकल के लड़के-लड़कियों के कथित प्रेम के तुच्छ रूप से बहुत हट कर था , उन दोनों के रिश्ते में एक सच्चाई थी , सच्चे और गहरे भाव से परिपूर्णता थी , परस्पर गहरी समझ का परिचय देता हुआ एक पवित्र रिश्ता था उनका . लगता था कि नंदिनी को भगवान ने सिर्फ पंकज के लिए ही बनाया है .

    नंदिनी एक दो बार और मुझ से मिलने के लिए आई . उसने मुझे बताया कि  उसके घर वाले भी पंकज को बहुत पसंद करते है , और उनकी शादी होने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है .मुझे बहुत ही अच्छा लगा यह जानकर और मैंने मन ही मन दोनों के विवाह के लिए दुआ की ..

                                                वक़्त गुजरता गया औरइसी तरह डेढ़ साल गुजर गया एक दिन रोज की तरह हम लोग जब ऑफिस आये तो पता चला  कि आज से इस समाचार पत्र की नागपुर में या अन्य किसी भी क्षेत्र में साप्ताहिक पत्रिकाए   नहीं बनायीं जाएगी ,बल्कि पत्रिकाए बनाने का सारा काम भोपाल स्थित मुख्यालय से ही होगा . इस तरह से हमारी उस नौकरी का अंत हो गया.

   वहा जो भी कर्मचारी थे सभी को बहुत दुःख हो रहा था, किन्तु पंकज सब से ज्यादा परेशां लग रहा था . सभी को तुरंत १५ दिनों का वेतन दे दिया गया किन्तु किसी कारण-वश   पंकज का वेतन  पूरा काट दिया गया, उसने सर से बार बार बहुत मिन्नतें की , वह बार बार बोल रहा था कि सर , सिर्फ हज़ार रूपये ही दे दीजिये , मुझे बहुत ज्यादा ज़रुरत है, लेकिन सर जरा भी नहीं पसीजे , उल्टा उसकी ४-५ दिनों की  अनुपस्थिति और काम में हुई उसकी कुछ गलतियों का हवाला देने लगे .

जारी....