मंगलवार, 10 मई 2016

अजीब है ये जिंदगानी के ये पल...



अजीब है ये जिंदगानी के ये पल...



अज़ीब है ये जिंदगानी के ये पल
कभी धूप तो कभी छांव बनकर ढले
कभी सुख-दुख की लहरों में ये पले
कभी लगे उजले निखरे से ये पल
तो कभी सूने-सूने  से लगे ये पल....


अज़ीब है ये जिंदगानी के ये पल
कभी लगे रिश्तों के मेले
कभी अकेलापन दूर तक ठेले
कभी हंसते हंसते बीते
कभी उदासी मन से न रीते
अज़ीब है ये जिंदगानी के ये पल
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मंगलवार, 8 जुलाई 2014

डरती हूं मैं --------------






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शुक्रवार, 18 मई 2012

यादें







मंद हवा के झौकों सी यादें 
ले आती जैसे शीतल पुरवाई 
इन पर न है बस किसी का 
ये तो होती है हरजाई ...
कभी ले आये मुस्कानों  की सौगात 
कभी कर जाए आँखों में बरसात 
कभी मीठी तो कभी कडवी बातें 
मन में सदा बसती  है ये यादें 
कभी मिल कर ये मन को घेरे 
कभी छेड़े राग अधूरे 
कभी पहुचाए मधुर बचपन में  
बसे जीवन की हर एक धड़कन में 
कभी चहकती मन के वन में 
कभी सूनी सूनी सी डोले घर आँगन में 
कभी बांधे जिन्दगी की ये डोर 
कभी थामे वक्त का कोई छोर ....

सोमवार, 8 अगस्त 2011

प्रकृति के अंदाज़



 
कलियों की कोमल पंखुरियों में रंगों की फुलवारी सजाए..
प्यारी भीनी खुशबू से जो , मन को आनंदित कर जाए..

शीतल मंद समीरो संग , झूम झूम कर राग सुनाये ...
एक फूल के खिलने में भी नियति के अनेक राज है ....
 कोमलता ,विनम्रता ,प्यार ,खूबसूरती ...ये सब उसके साज है
   कितने प्यारे , कितने अनोखे , प्रकृति के निराले अंदाज है

सोमवार, 23 मई 2011

अंतर


"अरे बेटी , पूरे दो महीने बाद आना हुआ तुम्हारा .....कैसी है मेरी बेटी ?"  माँ ने मायके आई हुई बेटी की कुशलक्षेम पूछते हुए कहा .

"क्या बताऊ माँ , मैं तो अपनी ननद से बड़ी परेशान हू . दो महीने भी पूरे नहीं गुजरते कि ननद रानी पति -बच्चो समेत मायके आ धमकती है . उनके बच्चो का सारा दिन धमा-चौकड़ी मचाना शुरू रहता है और ननद रानी आराम से अपनी माँ के साथ बतियाती बैठी रहती है ...इतने सारे लोगो का नाश्ता -खाना मुझे अकेले ही बनाना पड़ता है  और उसमे भी ढेरो फरमाइशे और नखरे ....ऊपर से ऑफिस में अलग छुट्टी लेनी पड़ जाती है ...अभी परसों ही मेरी ननद अपने ससुराल वापस गयी है ...तब मैंने चैन की साँस ली है और यहाँ आ पाई हू.." बेटी ने शिकायती अंदाज़ में जवाब दिया .

"कैसी है तेरी ननद ....क्या उसे जरा भी नहीं समझता कि तू एक नौकरी पेशा स्त्री है ...घर - गृहस्थी के सभी कामो के साथ साथ बाहर के काम भी करती है , फिर सास - ससुर की सेवा , दो छोटे बच्चों को संभालना , उन्हें पढाई करवाना ..ये सब जिम्मेदारिया  तेरे ही  ऊपर है ...ऐसे में उसे हर दो महीने में मुंह उठा के मायके नहीं चले आना चाहिए ...और इतनी फरमाइशे नहीं करना चाहिए ..खैर छोड़ , ये सब बाते ....पहले बता कि शाम के नाश्ते और रात के खाने में क्या बनवा ले .." माँ ने बड़े प्यार से अपनी बेटी से कहा, फिर अपनी बहू को आवाज़ दी ..."बहू ....दीदी के लिए अभी तक चाय -नाश्ता तैयार नहीं हुआ क्या ?  दीदी पूरे दो महीने बाद आई है ...ऐसा करो तुम ऑफिस से आज की छुट्टी ले लो ..."