शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008

मिलती है मंजिल उसे



















मिलतीहै मंजिल उसे,
जो कंटकों पर चल सकें,
करे कुछ ऐसा कि
ये दुनिया बदल सकें।
मिलती है मंजिल उसे
जो संघर्ष की धूप सह सकें
पार कर सकें गमों की डगर बिन सहारें
कठिनाईयों को पी सकें।
मिलती है मंजिल उसे
जो न हो असफलताओं से पराजित
लोगों की बातों से न हो विचलित
कुंदन सा तप सकें।







कवि तुम लिखो ऐसा गीत


कवि तुम लिखो ऐसा गीत
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
विश्व में फैले भारत की कीर्ति
उकेर दो कुछ शब्द
देश की यश कीर्ति पर
पावन गंगा जमना पर
गांधी नेहरू सुभाष पर
अपने प्राणों से प्यारे वतन पर
अपनी गौरवमयी संस्कृति पर
देश के अमर शहीदों पर।
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
जिससे बढे भाईचारा और प्रीत
मिट जाए द्वेष,क्षेत्रीयता और नफरत की भावना
हो सिर्फ राष्ट्रीयता, देशप्रेम और अखंडता की कामना
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई
मिलकर बजाए एकता की शहनाई।
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
भूल न पाएं हम अपना गौरवशाली अतीत
युवाओं में फैले जागृति
होकर प्रेरित,करें वे उन्नति
उत्साह का उनमें संचार हो
जिम्मेदारियों का उन्हें एहसास हो
छंट जाए निराशा और अवसाद के बादल
खुशहाली छा जाए पल पल
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
कवि तुम लिखो ऐसा गीत
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रविवार, 17 अगस्त 2008

कब तक उपेक्षित रहेगी हमारी राजभाषा-राष्ट्रभाषा हिन्दी ?

1४ sitambar आने वाला है और सभी केंद्रीय संस्थानों में शुरू होने वाली है हिन्दी पखवाडा,हिन्दी सप्ताह या हिन्दी दिवस को मनाने की कवायद । इन दिनों सभी कार्यालयों में हिन्दी से जुड़े हुए विद्वानों की खोज होगी ,हिन्दी के समारोह आयोजित किए जायेंगे ,हिन्दी को प्रोत्साहित करने की बात होगी और फिर हलचल समाप्त और अगले साल तक के लिए शान्ति व्याप्त ।
सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दी को वाकई इन पखवाड़ों-सप्ताहों की जरूरत है ? देखा जाए तो हिन्दी को वास्तव में इन पखवाड़ों-सप्ताहों दिवसों की जरूरत नही है, हमारी राजभाषा -राष्ट्रभाषा हिन्दी को जरूरत है तो शताब्दी की ,हम भारतीयों के संकल्प की ,और इस मामले में सरकार के दृढ होने की । ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है ,बस सरकार को हिन्दी को रोजगार और शिक्षा के सभी स्तरपर अनिवार्य रूप से जोड़ने की आवश्यकता है । भारत में जब अंग्रेजी लागू हुई तो क्या अंग्रेजो ने अंग्रेजी दिवस मनाये या अंग्रेजी में काम करने का निवेदन किया ? जबाब एकदम साफ़ है कि उन्होंने ऐसा कुछ ना करते हुए अंग्रजी को सीधे रोजगार से जोड़ दिया , अब जिनको नौकरी चाहिए उन्होंने एबी सी डी से शुरुआत करते हुए विदेशी भाषा भी सीखी और उसमे काम करने की आदत भी डाली । इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के कदम तारीफ के लायक है । उन्होंने नौकरी के हर स्तर पर मराठी को उचित तरीके से लागू किया है ,चाहे कितना भी बड़ा तकनिकी या अभियांत्रिकी संसथान हो, वहा से आने वाले पत्र अनिवार्य रूप से मराठी में ही आते है , ऐसा केंद्रीय स्तर पर भी तो हिन्दी को अनिवार्य roop सेअपना कर kiya जा सकता है .

मंगलवार, 5 अगस्त 2008

रामायण का विज्ञापन


इन दिनों टीवी पर एक नयी रामायण प्रसारित हो रही है और उसके प्रचार के लिए २-३ विज्ञापन भी दिखाए जा रहे है ,उन विज्ञापनों में से एक में बताया जा रहा है कि बच्चे असभ्य भाषा का प्रयोग करते हुए लडाई कर रहे है एक दूसरे को विभिन्न प्रकार की गाली दे रहे है और दूसरे में बताया जा रहा है कि एक छोटी सी लड़की किस प्रकार असभ्य शब्दों का प्रयोग कर रही है । इन विज्ञापनों को देख कर मन में एक सवाल कोंध रहा है कि क्या बच्चे इन विज्ञापनों को देख कर वाकई रामायण के प्रति आकर्षित होंगे या उन बुरे , असभ्य शब्दों को ग्रहण करेंगे ? मेरे ख्याल से तो जिन बच्चो को वे गालिया नही आती उनके अवचेतन मन में भी वे शब्द कही गहरे तक पैठ जायेंगे और कभी न कभी वे शब्द उन बच्चो के मुख से निकल सकते है । सवाल यह उठता है कि अनादिकाल से लोकप्रिय एवं हमारे संस्कारो में रची बसी रामायण की कथा प्र चार के लिए क्या ऐसे विज्ञापनों का सहारा लेना उचित है जो ख़ुद बच्चो को बुरे संस्कार सिखाने में सहायक हो सकते है । यदि प्रचार भी करना है तो क्या रामायण के प्रेरणादाई द्रश्यो को दिखा कर अथवा बच्चो को रामायण की अच्छी बातो की चर्चा करते हुए भी तो प्रचार किया जा सकता है । प्रसार मीडिया को अपनी जिम्मेदारी अच्छे से समझनी चाहिए और सरकार को भी इस पर अपना कठोर नियंत्रण रखना चाहिए .

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

पर्यावरण की सुरक्षा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए


आज नही चेते तो कल स्थिती सुधार करने लायक भी नही होगी.जी हाँ मैं बात कर रही हूँ ,प्रकृति से छेड़छाड़ और उससे प्राप्त होने वाले नतीजो की. आज जहा महाराष्ट्र और देश के कुछ इलाकों में बारिश के मौसम में जितनी वर्षा होनी चाहिए थी उतनी नही हो पाई है ,वही बिहार और अन्य भागो में बढ़ कहर ढहा रही है । कही बिजली की कमी है तो कही मूलभूत सुविधाओं की । आज से दस बरस पहले क्या हमने कभी सोचा था की पानी भी खरीद कर पीना पड़ेगा और अगर यही हालत रहे तो कुछ बरसो में ओक्सिजन भी खरीद कर साँस लेना होगा । न केवल हमारे देश में बल्कि पूरे विश्व में सर्वत्र महंगाई और प्रदुषण व्याप्त हो चुका है . माना इन सब चीजो को सुधारना पूरी तरह से न सही ,लेकिन आंशिक तोर से तो हमारे हाथ में है .आज सरकारी प्रयासों से अधिक जरूरत है कि आम आदमी चेते और अपने स्तर पर प्रयास करे । निम्नाकित सुझावों को अपना कर कुछ हद तक हम सुधर कर सकते है .
१-अपने घर के आँगन को कच्चा रखे ताकि वर्षा जल अवशोषित हो। वर्षा जल को पाइप द्वारा जमीन में भिजवाए .
२-अधिक से अधिक पेड़ पोधे लगाये । बच्चों के जन्मदिन पर उनके हाथ से पोधे लगाये और गिफ्ट में पेड़ पोधे देने को प्रोत्साहित करें
3-कार्यालयओं में अधिकतर लोगो का नजरिया होता है कि बिजली पंखे कूलर चल रहे हो तो चलने दो , हमें बिल थोड़े ही भरना है ,लेकिन वे ये नही सोचते कि बिजली कि कमी भी तो हमारा देश झेल रहा है । अतः इस नजरिये को बदलने का प्रयास करे और ख़ुद पहल करें
४-अपने नगर की झीलों को ,जलाशयों को अशुद्ध होने से बचाए.उसमे विसर्जन सामग्री ,प्लास्टिक के पेक्केट आदि न डालें ।
५-अक्सर मैं देखती हूँ विशेषकर महानगरों में , गृहनिया सब्जी फलो के छिलके इत्यादी अन्य कचरे के साथ प्लास्टिक बैग में dआल कर फिकवा देती है जिससे कि इन्हे खाने वाले जानवर मर जातें हैं । esliye ऐसा न करे सब्जी फलो के छिलके इत्यादी अलग करके जानवरों
को खाने के लिए डाले । हो सके तो गर्मी के दिनों में पक्षियों के लिए खिड़की में पानी का कटोरा भर कर रखे तथा जानवरों के लिए घर के बहार पानी का मटका इत्यादी रखे ।
६ -आसपास के छोटे मोटे कामो के लिए या तो पैदल चलें या साईकिल का उपयोग करे
इससे पेट्रोल कि बचत के साथ साथ कुछ व्ययाम भी होगा
७-हर कालोनी में सार्वजनिक उद्यानों की स्थापना करे तथा वह की सफाई तथा पोधों को जल सिंचन की और ध्यान दे । अधिक से अधिक नीम और तुलसी के पोधे लगायें। ये प्रदुषण कम करने में सहायक है.
मेरा मानना है कि इतना तो हर कोई आसानी से कर सकता है ।
शेष फिर कभी ।