कभी तो रिश्तों में ढूंढे से भी न मिले अपनापन
तो कहीं सहज ही मिल जाते है मन
कभी परछाई भी उजाले की साथी बनकर अँधेरे में छुप जाये
तो कहीं वजूद किसी और का खुद में महसूस किया जाये
कभी जीवन में अपना पराया समझ में न आये
तो कहीं जन्म जन्म का बंधन सांसों से बंध जाएँ
क्योँ ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?
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कभी तो चार पलों में जी उठते सारा जीवन
तो कहीं लगते सारे अजनबी से क्षण
कहीं फैला है चाहत का विस्तृत आकाश
तो कहीं रिश्तों में व्याप्त सूनापन और प्यास
कभी पुराने लम्हे फिर से नयें अहसासों में ढल जाये
तो कही रिश्तों के नए अर्थ नए रूप में बदल जाये
क्यों ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?
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कभी तो गंतव्य तक पहुच कर भी अर्थहीन रहते शब्द
तो कहीं बिन संचार के ही तरंगित हो उठते शब्द
कभी तो समझा समझा कर हार मान ली जाये ,
तो कही बिन कहे सुने ही सब समझ में आ जाये
कभी तो साथ साथ रह कर भी बने रहे पराये
तो कहीं लाख दूरियों के बीच भी मनो का मेल हो जाये ।
क्यों ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?
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कभी तो कहने सुनने को कुछ रहे नहीं शेष
तो कहीं कहने सुनने के लिए वक़्त कम पढ़ जाये
कहीं लगें मन का हर कोना सूना सूना
तो कहीं यादों के दरख़्त से टूटे लम्हे मन के आँगन में खिल जाये
कभी खुद की पहचान भी बन जाये अपरिचित
तो कहीं संपूर्ण अस्तित्व भी एक दुसरे में समाये
क्यों ऐसा होता है कोई तो बतलाये ?
कोई तो बतलाये ?
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22 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
"क्यों ऐसा होता है , कोई तो बतलाये ?"
शब्दों और भावों का शानदार संयोजन - बधाई
यही तो जीवन है.... कभी अमावस की काली अंधेरी रात हिस्से में आती है, तो कभी पूर्णिमा का चांद सामने होता है!...बहुत सुंदर!
शायद कोई नहीं बता सकता ..कम स कम मैं तो बिलकुल नहीं हाँ मैंने भी हर इन्सान की तरह आपके इन भावो को जिया है और यहीं प्रश्न खुद से किया है ...आखिर क्यूँ ?
लेकिन कोई जवाब नहीं ..आपको पता चले तो जरूर बताना .
कश-म-कश ,मर्म ,ख्वाहिशें बेजारी और तड़फ हर भाव को आपने एक कविता में ऐसे समेट दिया है जैसे सागर सारी नदियों को अपने आप में समा लेता है
आप जैसी महान कवियत्री ने मेरे बिखरे हुए शब्दों को सराहा ..नि:संदेह ये मेरे लिए फक्र की बात है
मन में बहुत सवाल उठते हैं , मन निगोड़ा लेट-गो करता ही नहीं...खेल भी तो सारा मन का ही है , जानती हैं न परछाई देखने के लिए भी थोडा सा उजाला चाहिए , अंधेरी रात में कौन किसका साथी ? चिराग अपने दिल का ही रौशन करना होगा ...आपने इस उहापोह को शब्द दे दिए हैं .
पता नहीं क्यों आपको टिप्पणी देने में परेशानी हुई ..मेरे दुसरे ब्लोग्स भी शायद आपको अच्छे लगें ..लिनक्स दे रही हूँ ...
www.shardaarora.blogspot.com
www.sharda-arorageetgazal.blogspot.com
यही क्षण तो जीवन को गति देते है \
बहुत ही सुन्दरता से मानवी य भावो का चित्रण किया है \सुन्दर रचना |
Kamaal hai! Sawaal bade poochhtee hain aap!
Ha ha ha...
Utkrisht rachna!
Darasal ye aapko bhi pata hai ke in sawaalo ka koi jawaab nahin...
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ.....रास्ता आपने ही सुझाया....उसके लिए शुक्रिया
सच है की रिश्ते अब अपनापन बना लेते हैं और कुछ रिश्ते अपने हो कर भी अपने नहीं लगते ....आपकी कविता बहुत कुछ कहती है रिश्तों पर....अच्छी अभिव्यक्ति
कृपया यहाँ भी देखें ...
http://geet7553.blogspot.com/
bahut hi acchi rachna!
कभी तो रिश्तों में ढूंढे से भी न मिले अपनापन
तो कहीं सहज ही मिल जाते है मन
स्वाति जी, कविता की शुरुआत ही बहुत सच्ची और निर्दोष सी है. बधाई.
अति प्रशंसनीय रचना स्वाँति जी ।
हमने तुम्हे छुआ ।
कुछ भी नही हुआ ।
हमने तुम्हे छुआ ।
अनिर्वचनीय दुआ ।
...बेहतरीन ... प्रसंशनीय !!
bahut sundar
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
अति प्रशंसनीय रचना स्वाँति जी
first to aap bahut hi sunder likhti hai..
sacond mera nanihal chidwara hai....
aap to mere nanihal ke paas ki hai..
special thanks swati ji...
अगर यही पता चल जाए तो जीवन सरल न हो जाए
सही मैं अपना कब पराया बन जाता है पराया कब अपना पता ही नहीं चलता
नि: शब्द ... आपको पहली बार पढ़ा ...बहुत प्रभावशाली रचना...
पूरे उत्तर तो नहीं दे सकता पर मन की संतुष्टि के लिए ये पढ़ें
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/04/blog-post_04.html
isi kashmkash mein waqt guzar jata hai
bahut sundar rachna badhai!!
शुक्रिया .
कविता ,मुलाक़ात एक संयोग ? मासूम की उलझन ,....सब अपनी जगह .. लेकिन आपको बेटा होने की तहे दिल से मुबारकबाद देना चाहती हूँ .
कौन समझाए...!
मृत्यु लोक में देव भी आए उलझ-उलझ रह जाए.
कौन समझाए...!
...सुंदर अभिव्यक्ति.
कभी तो रिश्तों में ढूंढे से भी न मिले अपनापन
तो कहीं सहज ही मिल जाते है मन
अति सुंदर! स्वाति जी ,
पहली बार आप को पढ़ रही हूं पर मन को छू गई ये कविता
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