मंगलवार, 4 नवंबर 2008
आज कल में डूब गया
क्या हुआ कि-
कुछ यादें ताजा हुई
नजरें कुछ ढूंढने लगी
दिल कुछ कहने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
क्या हुआ कि -
आंखें कुछ नम हो गई
मन कहीं खोने लगा
स्मृति कोष हुए हरे-भरें
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
क्या हुआ कि -
होंठों पर गीत पुराना आ गया।
मंजरियों की अलकें झूलने लगीं
मन पुरानी गलियों में घूमने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
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7 टिप्पणियां:
क्या हुआ कि -
होंठों पर गीत पुराना आ गया।
मंजरियों की अलकें झूलने लगीं
मन पुरानी गलियों में घूमने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
-बहुत बेहतरीन!! बधाई.
बहुत अच्छा लगा पढकर।
क्या हुआ कि-
कुछ यादें ताजा हुई
नजरें कुछ ढूंढने लगी
दिल कुछ कहने लगा
और आज कल में डूब गया।
बहुत उम्दा।
क्या हुआ कि-
कुछ यादें ताजा हुई
नजरें कुछ ढूंढने लगी
दिल कुछ कहने लगा
और आज कल में डूब गया।
अच्छी लगी कविता आपकी.शुभकामनाएं.
बहुत सुन्दर..
मंजरियों की अलकें झूलने लगीं
मन पुरानी गलियों में घूमने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया ?
अद्भुत रचना...बहुत खूबसूरत शब्द और लाजवाब भाव...आप को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है...लिखती रहिये...
नीरज
स्मृति कोष हुए हरे-भरें
और आज कल में डूब गया।
सुंदर भाव
होंठों पर गीत पुराना आ गया।
मंजरियों की अलकें झूलने लगीं
मन पुरानी गलियों में घूमने लगा
और आज कल में डूब गया।
कौन याद आ गया?
आपकी काफी पुरानी पोस्ट - मैं देर से आया हूँ - भाव और प्रस्तुति बहुत सुंदर - अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा.
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