मेरे मन में बसेरा कर रहे एहसास-भावों को सुधि पाठकों तक पहुंचाना चाहती हूं।
शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008
मिलती है मंजिल उसे
मिलतीहै मंजिल उसे, जो कंटकों पर चल सकें, करे कुछ ऐसा कि ये दुनिया बदल सकें। मिलती है मंजिल उसे जो संघर्ष की धूप सह सकें पार कर सकें गमों की डगर बिन सहारें कठिनाईयों को पी सकें। मिलती है मंजिल उसे जो न हो असफलताओं से पराजित लोगों की बातों से न हो विचलित कुंदन सा तप सकें।
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