कल रात की बात है मैं अपने बड़े बेटे को पढ़ाने के लिए उसके साथ बैठी थी ॥ जो की अप्रैल माह से क्लास २ में गया है ,तो मैंने पाया की स्कूल का जिक्र चलने से मेरा बेटा कुछ उदास सा हो गया ..मैंने कारन पूछा तो वह कुछ रुआसा सा हो गया फिर उसने बताया की उसके साथ क्लास १ में एक बच्ची पढ़ती थी , जो की उनके साथ क्लास २ में नहीं आ पाई , वह क्लास १ में ही रह गयी है , और इसमाह में क्लास १ सुबह ही छूट जाती है , किन्तु उस बच्ची का ऑटो पूरी छुट्टी होने पर २.०० बजे ही आता है , तो वह बच्ची बेचारी अकेली ही क्लास १ में बैठी रहती है ॥ चुकी वह बच्ची अपने पुराने सहपाठियों को ही जानती है , तो शायद इन्ही लोगो की क्लास में सहारा ढूँढ़ते हुए रोती हुई आ गयी ॥ लेकिन क्लास २ की शिक्षिका ने जब उसे देखा तो उसे क्लास १ में ही जाकर बैठने को कहा और अपनी क्लास से बहार निकालदिया ॥ मेरा बेटा यह बताते हुए सुबकने लगा था , उसे यह उलझन हो रही थी की वह बच्ची कैसे अकेले ४ घंटे उस क्लास में गुजारेगी यदि उसे किसी चीज़ की ज़रुरत पड़गयी तो वह किस्से मांगेगी ?
फिर उसने मुझ से पुछा की यदि आप शिक्षिका होती तो क्या उसे थोड़े समय के लिए बैठने देती ? मैंने कहा - हा , तो वह कुछ आश्वस्त सा नज़र आया ॥ मैं कुछ सोच में पड़ गयी ,लगा की इस मामले में कुछ करना चाहिए ,लेकिन यही लगा की इस बात को मैं फ़ोन पर शिक्षिका से कहू तोबड़ा अजीब लगेगा , और कहू भी तो किस अधिकार से कहू ? या स्कूल जाकर उनसे विनती करू , लेकिन यहाँ भी समस्या है ,की मुझे उसके लिए छुट्टी लेकर जाना पड़ेगा और किसी दुसरे बच्चे के बारे में बोलना उन्हें कुछ रासनहीं आये ॥ इक्षा होते हुए भी मैं इस मामले में कुछ न कर पाई सिवाय दुखी होने के ...
मंगलवार, 13 अप्रैल 2010
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2 टिप्पणियां:
इन मासूम सी उलझनों में अक्सर उलझ जाने के अलावा कोई और हल नहीं होता !
मासूम की उलझन बड़ी मासूम है। अभिषेक की बात से सहमत!
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