मित्रो , यह कविता नहीं बल्कि मेरे विवाहपूर्व के अल्हड जीवन और वर्तमान के व्यस्त और जिम्मेदारियों से युक्त जीवन की पूरी इमानदारी के साथ की गई तुलना है , इसलिए ही मैंने इसका शीर्षक चुना है -तब और अब
(!!! सभी पाठको को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !!!)
तब निरंतर जारी रहता ,हसने का क्रम
अब एक मुस्कराहट भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।
तब हजारो रेसिपिया संजोते थे डॉयरियो में हम
अब एक व्यंजन भी बन जाए , तो बड़ी बात है ।
तब हजारो गीत गुनगुनाते थे हम
अब एक पंक्ति भी गा पाये ,तो बड़ी बात है ।
तब नित तारीफों की बरसात में भीगते थे हम
अब सराहना की एक बूँद भी पा जाए ,तो बड़ी बात है ।
तब दूसरो के बच्चों को सुनाया करते थे हजारो रोचक कहानिया हम ,
अब ख़ुद के बच्चों को एक कहानी भी सुना पाये , तो बड़ी बात है ।
तब एक जरा सी बात पर नदियाँ आसुओं की बहाया करते थे हम ,
अब हज़ार ग़मों में एक आंसू भी आ जाए , तो बड़ी बात है ।
तब एकदम निश्चिंत ,एकदम बेफिक्र थे हम ,
अब एक चिंता भी कम हो जाए ,तो बड़ी बात है ....
21 टिप्पणियां:
kitani badal jaati hai zindagi ek naye rishtey ke saath,bahut sahi likha hai aapne.badhai
सच में जिंदगी ऐसी होती है, शादी के बाद? भावुक है, सुंदर है...लेकिन डराती भी है...इतनी उदास...
अच्छी तुलना-बढ़िया है, बधाई.
बहुत सच्ची और अच्छी रचना...वाह....
नीरज
अरे बाप रे तब ओर अब मै क्या इतना अन्तर है??
बहुत सुंदर कविता लिखी है आप ने पढ कर हंसी आ गई , बात यह है कि पहले कोई जिम्मेदारी नही होती, ओर अब सारी जिम्मेदारी झेलनी पडती है.
धन्यवाद
बहुत खूब लिखा है। ऐसा ही होता है जीवन में।
घुघूती बासूती
बहुत प्रभावशाली और यथाथॆपरक रचना है । आपकी पंिक्तयां वास्तिवकता को िजस सुंदर तरीके से अिभव्यक्त करती हैं, वह बडा हृदयस्पशीॆ है । भाव और िवचार के समन्वय ने रचना को मािमॆक बना िदया हैं-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
तब स्वतंत्र जीवन था. अब जिम्मेदारियों का जीवन है, और इस जीवन में संघर्ष भी होगा.
तब आप पापा और मम्मी की बातों का विरोध भी कर लेतीं थीं.
अब पति, सास... की ग़लत बातों का विरोध हो जाए तो बढ़ी बात है.
सच लिखा है, और मजे की बात तो यह है कि पुरुष भी लगभग इसी से मिलती-जुलती सोच रखते हैं… यानी कि शादी के बाद दोनों के ही जीवन में काफ़ी बदलाव आ जाते हैं… यही तो जीवन है… इसमें निराशा कैसी…
First of all Wish u Very Happy New Year...
Bahut achchh tulnatamk vislesan hai tab aur ab me aur aap es prash me puri tarah sahi hai...
Regards..
नववषॆ में आपकी लेखनी का प्रकाश समस्त भूमंडल को आलोकित करे । इसी भावना के साथ नववषॆ की बधाई ।
े
http://www.ashokvichar.blogspot.com
क्या खूब लिखी. हमें याद आ गये गीत के बोल "ए जीवन है ....." बहुत सुंदर रचना. बधाई हो. हाँ नव वर्ष मंगलमय हो. आभार.
http://mallapr.wordpress.com
achchhi rachna hai, yah aapki hi nahi adhiktar ladkio k tab or ab ka anter hai.
हमने तो समझ ली स्वाति जी आपकी बात
कुंवारे भी समझ जाएँ तो ये और बात है....!!
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ
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swatiji, apke tab apke hi ab se bhari hain. tab ki yaad ki takat se ab utha paa rahin hain aap. ---vaise thoda ab ko jara aur gale se laga kar dekhen, baat aur ban jaye.
bhai is tarah daraaiye mat :)
bahut khoob...vastav main samay har cheej ko badal kar rakh deta hai
सुना तो है कि ऐसा होता है, लेकिन इतना भी नही कि इस कदर
मायूस होना पड़े...फिर भी काव्यात्मक अभिव्यक्ति बहोत ही अच्छी है ...
तब और अब का फ़र्क जैसा भी हो ...
बहोत मासूम है .. . . . . !!
---मुफलिस---
सही कहा, वक्त वह शै है, जो बडे बडों को बदल देता है। और जो बदलते नहीं, वे मिट जाते हैं।
aapka blog achcha hai.
tab aur ab kavita men itna avsaad ???
arre kuch roomaan bhi to hota hai har naye badlaav ke saath.
use bhi abhivyakti deejiye.
baharhaal aapke rachna men anubhuti kee spandansheelta prabhavit karti hai.
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