दिशाहीन उड़ानें भरते
मन के पंछी की रोकना चाहती हूं हलचल
किसी पेड़ के साए तले
तुम्हारे कंधे पर सर रखकर ढढना चाहती हूं समस्याओं के हल
तुम्हारे साथ मिलकर
दिल के तारों को छेड़कर
गुनगुनाना चाहती हूं एक मीठी गजल
टिमटिमाते तारों को हाथ से छूकर
बनाना चाहती हूं उन्हें अपना आँचल
दूर किसी जंगल में विचरते हुए
प्रकृति माँ की गोद में बिताना चाहती हूं पल-पल।
मन के पंछी की रोकना चाहती हूं हलचल
किसी पेड़ के साए तले
तुम्हारे कंधे पर सर रखकर ढढना चाहती हूं समस्याओं के हल
तुम्हारे साथ मिलकर
दिल के तारों को छेड़कर
गुनगुनाना चाहती हूं एक मीठी गजल
टिमटिमाते तारों को हाथ से छूकर
बनाना चाहती हूं उन्हें अपना आँचल
दूर किसी जंगल में विचरते हुए
प्रकृति माँ की गोद में बिताना चाहती हूं पल-पल।
9 टिप्पणियां:
सुंदर भावों को संजोया है
सीधे शब्दों मैं
अच्छी रचना
दूर किसी जंगल में विचरते हुऐ....सुंदर कविता
काव्य की धारा सही, मगर ना ढूंढो बाहर.
राहत बस पाओगी स्वाति, अपने अन्दर.
अपने अन्दर झांकना तब मुश्किल होता है.
बाहर के व्यामोह में मन डूबा होता है.
शक है साधक, काम ना आये विचार-धारा.
मन के भाव बताये सही काव्य की धारा.
sundar bhaavpoorn panktiyan hain.
bahut sundar bhav dil ko chu gaye
बेहतरीन!!
दूर किसी जंगल में विचरते हुए
प्रकृति माँ की गोद में बिताना चाहती हूं पल-पल।
sunder kavita
Wah..wa
kya baat hai..badhai..
acchi kavit,badhai .Prakriti ke nikat jana sabhi chahte hai. bhagwan kare aapki dua kubul ho.AAMEEN.
aapka hi
dr.bhoopendra
एक टिप्पणी भेजें