अजीब है ये
जिंदगानी के ये पल...
अज़ीब है ये
जिंदगानी के ये पल
कभी धूप तो कभी
छांव बनकर ढले
कभी सुख-दुख की
लहरों में ये पले
कभी लगे उजले निखरे
से ये पल
तो कभी
सूने-सूने से लगे ये पल....
अज़ीब है ये
जिंदगानी के ये पल
कभी लगे रिश्तों के
मेले
कभी अकेलापन दूर तक
ठेले
कभी हंसते हंसते
बीते
कभी उदासी मन से न
रीते
अज़ीब है ये
जिंदगानी के ये पल
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6 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 12 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
Wah !
बहुत बहुत आभार शुभाजी एवं दिग्विजय जी.....
उम्दा
Bahut achha likhti ho Swati
Shandar,Swati.Jindgi ke sabhi rang sameta he apni kavita main.
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