तारो भरे आसमान को देखते हुए छत पर सोना
केसरिया सुबह की किरनो से नींद का खुलना
वो चिड़ियों का मधुर कलरव और उनका दाना चुगना
फूलों और कलियों को मुस्काते और ओस में नहाते देखना ....
ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा
उन्मुक्त होकर बाग-बगीचों खेत - खलिहानों में घंटो खेलना
कभी घर घर खेलना तो कभी गुड्डे -गुड़ियों का ब्याह रचाना
पापा की उंगली पकड़ कर मेले में ख़ुशी ख़ुशी जाना
और ऊँचे से झूले में बैठ कर जोर जोर से चिल्लाना ....
ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा
वो स्कूल का तनाव रहित माहोल
जहाँ हँसी-खुशी गुजरे हमारे बचपन के पल
प्रेरणा दाई वे शिक्षक -शिक्षिकाए और उनका प्यार भरा दुलार
पढाई संग खेलकूद और पक्की दोस्ती की भरमार
घर लौटने पर माँ का दरवाजे पर खड़ा रहना
आते ही बस्ता फेक कर खेलने को भाग निकलना ...
ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखा
ज़िन्दगी की झंकार को गीत में घुलते हुए
मिटटी की खुशबू को मन तक पहुचते हुए
अपनेपन और विश्वास को रिश्तों में पनपते हुए
बारिश के पानी में कागज़ की नावों को बहते हुए
काश, तुम्हे मैं दे पाऊ वे खूबसूरत सुहाने क्षण
जिससे खुल के जी सको तुम अपना मधुर सा बचपन ....
25 टिप्पणियां:
ए मेरे बच्चे ,तुमने नहीं देखाज़िन्दगी की झंकार को गीत में घुलते हुए मिटटी की खुशबू को मन तक पहुचते हुए अपनेपन और विश्वास को रिश्तों में पनपते हुएबारिश के पानी में कागज़ की नावों को बहते हुए काश तुम्हे मैं दे पाऊ वे खूबसूरत सुहाने क्षण जिससे खुल के जी पो तुम अपना मधुर सा बचपन ....
सुन्दर कोमल मनोभावों के प्रस्तुति ..
बहुत सुन्दर ...आज के महानगरों के बच्चों के लिए तो यह सब एक कल्पना लोक की बातें हैं..
मनमोहक भावाभिव्यक्ति.
bahut khoob.
par kya aaj ki mashini zindgi main bacche ko vo sab mil sakega? aaj ka baccha to.........ab aur kya bolu bahut kush hai bolne ko..... bas itna ki tez raftaar zindgi ne baccho se bachpan sheen liya hai.
sundar rachnaa .... kal shukrvaar ko aapki yah bhavnaon se bhari sundar rachna charchamanch par hogi... aapka shukriya
aap charchamanch pe aa kar apne vichaar likhen ..skriy bhaag len..
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत सुन्दर भाव ..आज के बच्चे यह सब कहाँ जी पाते हैं
आह! आपने तो मेरे मन के भावो को शब्दो मे पिरो दिया ……………सच आज के मशीनी युग मे हमारे बच्चो ने कहाँ देखा वो सब जो हमने भरपूर जीया है……………
एक बेफ़िक्री का आलम होता था,
वो छत पर सोना तारों को निहारते हुये……………
वो बारिश मे भीगना सखियों संग,
वो नीले आकाश मे
पछियों को उडते चहचहाते देखना,
रात को हवा ना चलने पर
पुरो के नाम लेना,
वो सावन मे झूलों पर झूलना,
कभी धूप मे खेलना
तो कभी शाम होते ही
छत पर धमाचौकडी मचाना
कभी पतंगो को उडते देखना
तो कभी उसमे शामिल होना ,
कभी डूबते सूरज के संग
उसके रंगो की आभा मे खो जाना ,
कभी गोल-गोल छत पर घूमना
और अपने साथ-साथ
पृथ्वी को घूमते देखना और खुश होना
अरे ये क्या मै ही लिखने लगी यहाँ अपने भाव कविता के रूप मे चलो इसे बाद मे पूरी करती हूँ …………सच आपकी कविता ने फिर से उन दिनो की यादो मे पहुंचा दिया…………आभार्।
बहुत सुन्दर भाव .
सही कहा बहुत अप्रत्याशित परिवर्तन हो चूका है ..आखिरी पंक्ति में छोटी सी प्रिंटिंग की गलती हो गयी है कृपया सुधार दीजिये .
कहीं न कहीं आज हम सब का मन शहर की भीड़ से दूर वापिस गाँव की ओर भाग जाने को जरूर करता है क्योंकि हम सब जानते है जो हमें शहर में मिला उससे कहीं अधिक फीचर गाँव में छूट गया .......बहुत सुंदर कविता बधाई
सोमेश्वर पाण्डेय
बहुत संवेदनशील हो ! वाकई पहले के वे अहसास भाव अब नहीं मिलते, काश हम अपने बच्चे को दे सकें ... शुभकामनायें !
सुन्दर -सार्थक प्रस्तुति .बधाई .
वाह बहुत सुंदर.
वाकई ....!यहाँ यह कल्पना है ! शुभकामनायें !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ|
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
Ati sundar.
Badhayi swikaren.
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क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?
क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?
सुंदर भावाभिव्यक्ति॥
अतीत की मनोरम झांकियों से
साक्षात्कार करवाती हुई
अनुपम कृति ....
अभिवादन .
बचपन के गायब होने पर कविमन की एक मार्मिक अभिव्यक्ति
nice lines....
अरे कहाँ गायब हैं आप ! शुभकामनायें !
वाकई हमारे बच्चों को वो बहुत कुछ नहीं मिला जो हमारे बचपन में था...
आज के बच्चे अपनी तीसरी पीढ़ी के जीवन की बहुत सी बातों,अहसासों,भावों और मनोभावों से बहुत दूर हैं...एक सुंदर भावपूर्ण कविता
बहुत बढिया...वास्तविकता का अंकन बहुत ही सुंदर स्वरूप से किया है....
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