मंगलवार, 11 नवंबर 2008
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
भूख से लड़ती,धूप में तपती
कर्मठ सुकोमल नारी को देखा है।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
गला सूखा, जीभ प्यासी
फिर भी अपने जिगर के टुकड़े को
वक्ष से लगाकर पयपान कराते देखा है।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
मैली कुचैली तार-तार
फटी साडी में सहम कर
तनमन छुपाते देखा है,
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
खुद भूखे पेट रहकर भी
पेट की ज्वाला भड़कने पर भी
घरवालों को भरपेट खिलाते देखा है।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
फूस की झोंपडी में
तेज आँधी-पानी में
खुद भीगते हुए भी
अपने बच्चे को बचाते देखा हैं।
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
हर नई सुबह
सुनहरे भविष्य के सूर्य के उगने के इंतजार में
आशान्वित होते देखा है
आँसू को मुस्कान में ढलते देखा है।
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7 टिप्पणियां:
बडे ढंग से सटीक चित्रण किया गया है।
बहुत सुन्दरता से सधी हुई अभिव्यक्ति!!
फूस की झोंपडी में
तेज आँधी-पानी में
खुद भीगते हुए भी
अपने बच्चे को बचाते देखा हैं।
bahut sunder
Sundar.
bahut sunder, bahut achhe..
kabhi mere blog par bhi aaiye, mujhe achha lagega..
http://pupadhyay.blogspot.com/
Swati ji,
Namaskar,
Maine aapki kavitaye padhi ,,,,,,,
Maine kafi lutf uthaya aapki kavitao ka..........
Sach mein aap bahut hi acchi kavita likhti hai, main to yehi chahta hu ki aap hamesha hi aise hi kavitao ka srijan karti rahe aur humko hamesha hi unme se kuch na kuch sikhne aur dekhne ko milta rahe, aur saraswati maa ka aashirwad aap par hamesa hi bana rahe
aap bahut hi accha likhti hai, aapki lekhni hamesha hi sundar sundar kavitao ka srijan karti rahe............
Regards
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